अरुण योगीराज मैसूर के निवासी हैं। उत्तराखंड स्थित केदारनाथ धाम में जगद्गुरु शंकराचार्य की जिस प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनावरण किया था, उसे उन्होंने बनाया था। दिल्ली के इंडिया गेट पर पीएम मोदी ने ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिस प्रतिमा का अनावरण किया था, उसे भी अरुण योगीराज ने गढ़ा था। अब उनकी बनाई रामलला की प्रतिमा राम मंदिर के गर्भगृह में स्थापित हो गई है। इस प्रतिमा को बनाने के दौरान वे सात्विक आहार पर थे, और उनकी आँख में जख्म भी आया था।
“अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम सोमवार (22 जनवरी, 2024) को होने वाला है, लेकिन इससे पहले ही रामलला की प्रतिमा की तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आ गई है। इसके बाद भक्त भाव-विह्वल हो गए हैं और 500 वर्षों के संघर्ष एवं बलिदान के बाद आए इस पल पर अपनी खुशी को रोक नहीं पा रहे हैं। इस प्रतिमा को कृष्णशिला से गढ़ने वाले कर्नाटक के मूर्तिकार अरुण योगीराज की भी बहुत तारीफ हो रही है।
अयोध्या के लिए वे सबसे उत्तम प्रतिमा बनाना चाहते थे। इस दौरान उन्होंने 6 महीने तक अपने परिवार वालों से मिलना नहीं किया। अयोध्या में वे अपने कुलदेव की पूजा के साथ दिन की शुरुआत करते थे। इसके बाद उन्होंने वहाँ के पंडितों के साथ होने वाली पूजा-अर्चना में हिस्सा लिया। रामकथा के विद्वानों ने उनकी मदद की, उन्हें बताया कि श्रीराम कैसे दिखते हैं, उनमें आमजन क्या देखते हैं। मूर्ति बनाने के दौरान एक हादसा हुआ और उनकी आँख में एक पत्थर का नुकीला टुकड़ा घुस गया था।
इसके बाद उनकी सर्जरी हुई। कई दिनों तक उन्हें एंटीबायोटिक और पेनकिलर्स पर रखा गया। हालांकि, रामलला की भव्य प्रतिमा गढ़ने से उन्हें कुछ भी नहीं रोक सका। उनकी पत्नी विजेता ने ‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ को यह जानकारी दी है। अरुण योगीराज ने 2008 में मैसूर यूनिवर्सिटी से MBA किया है, लेकिन निजी कंपनी में नौकरी छोड़कर उन्होंने अपने पारिवारिक पेशे को चुना। मैसूर के गुज्जे गौदाना पुरा स्थित एक जगह से पत्थर लाया गया, जिससे रामलला की प्रतिमा गढ़ी गई है। यह एक दक्षिण भारतीय प्राचीन पत्थरों में से एक है।”
अरुण योगीराज ने पहले ही कहा था कि ये भगवान राम के बाल स्वरूप की प्रतिमा है, लेकिन ये दिव्य भी होनी चाहिए क्योंकि लोग उनमें ईश्वर को देख कर दर्शन करेंगे। अरुण योगीराज के दादाजी ने ही उनके मूर्तिकार बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। वो बसवन्ना शिल्पी के 17 पोते-पोतियों में से एक हैं। उनके पिता का नाम योगीराज है। उनके दादा ने गायत्री मंदिर और भुवनेश्वरी मंदिर की प्रतिमाओं को गढ़ा। बसवन्ना शिल्पी मैसूर राजघराने के शिल्पश्री सिद्धलिंगा स्वामी के प्रिय शिष्यों में से एक थे।