बेंगलुरु : भारत ने एक महत्वपूर्ण मोमेंट बनाया है, क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने तीसरे चंद्र अभियान, Chandrayaan-3, के विक्रम लैंडर को बुधवार को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतारने का काम किया है। इससे भारत ने दुनिया में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाले पहले देश की स्थापना की है और यह अपने आप में एक ऐतिहासिक कदम है, जो पहले तक किसी ने नहीं उठाया था।
हम सबका था विश्वास
इसलिए हम हो गए कामयाब,
चांद पर हो गई सॉफ्ट लैंडिंग
दुनिया ने कहा जीता हिंदुस्तान।
चंद्रविजयी की शुभकामनाएं
इस सफलता के साथ, भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाले पहले देश की श्रेणी में आ गया है। और साथ ही, भारत ने अमेरिका, चीन और पूर्वी सोवियत संघ के बाद चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाले चौथे देश की पंक्ति में खुद को शामिल किया है। चंद्रमा पर अमेरिका, पूर्वी सोवियत संघ और चीन ने पहले ही ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की कोशिश की है, लेकिन ये सभी तकनीक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में सफलता नहीं प्राप्त कर सके थे। Chandrayaan-3 के लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में 15 से 17 मिनट की आवश्यकता थी। इस मिशन को 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2:30 बजे लॉन्च किया गया था।
इस अभियान के अंतर्गत, यान ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर पहली बार सफलतापूर्वक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की है, जिसे पहले तक कोई देश नहीं कर पाया था। चंद्रमा पर अमेरिका, पूर्वी सोवियत संघ और चीन ने पहले ही ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का प्रयास किया है, लेकिन ये सभी उनके प्राथमिक और उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में हुआ था, न कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में।
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 600 करोड़ रुपये के मूल्य के साथ Chandrayaan-3 मिशन को चार साल की मेहनत के बाद सफलतापूर्वक पूरा किया। यह मिशन इसरो का दूसरा प्रयास है, क्योंकि पहले Chandrayaan-2 मिशन के दौरान 2019 में उनका विक्रम लैंडर ब्रेक प्रणाली में गड़बड़ी होने के कारण चंद्रमा की सतह से टकरा गया था। भारत ने पहले भी 2008 में चंद्रयान-1 मिशन की शुरुआत की थी, जिससे वह चंद्रमा की दिशा में पहला कदम बढ़ाया था।
भारत, मैं अपनी मंजिल पर पहुंच गया हूं ः Chandrayaan-3
ने के कारण चंद्रमा की सतह से टकरा गया था। भारत ने पहले भी 2008 में चंद्रयान-1 मिशन की शुरुआत की थी, जिससे वह चंद्रमा की दिशा में पहला कदम बढ़ाया था।
Chandrayaan-3 लैंडर मॉड्यूल की ख़ासियत
- Chandrayaan-3 के लैंडर मॉड्यूल में लैंडर और रोवर्स शामिल हैं.
- इन दोनों के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब उतरने के बाद उनका जीवन काल एक चंद्र दिवस है. यानी चांद पर एक दिन तक रिसर्च की जाएगी.
- चंद्रमा पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है.
- Chandrayaan-3 का लैंडर दो मीटर लंबा, दो मीटर चौड़ा, एक मीटर 116 सेमी ऊंचा और 1749 किलोग्राम वजनी है.
- Chandrayaan-3 के संचार में लैंडर अहम भूमिका निभाएगा क्योंकि यह लैंडर से निकले रोवर से संचार करता है.
- यह रोवर के साथ-साथ Chandrayaan-2 पर लॉन्च किए गए ऑर्बिटर के साथ भी संचार करेगा.
- इनके अलावा यह बेंगलुरु के पास बेलालू में इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से सीधा संवाद करेगा.
- चंद्रयान वन और मंगलयान जैसे अंतरिक्ष अभियान के दौरान भी नेटवर्क से संवाद किया गया था
Chandrayaan-3 | 14 दिनों तक करेगा प्रयोग
Chandrayaan-3 के लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल सभी को संचालित करने और पृथ्वी पर गहरे अंतरिक्ष नेटवर्क तक सूचना प्रसारित करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है.
यह बिजली सौर पैनलों से आती है. इसीलिए इसरो लैंडर मॉड्यूल को ठीक सूर्योदय के समय चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश कर रहा है.
पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर चंद्रमा पर दिन का समय होता है, इसके बाद 14 दिनों तक रात का समय होता है.
ऐसे में स्पष्ट है कि चंद्रमा की सतह पर दिन के दौरान लैंडर और रोवर्स को सौर ऊर्जा मिलेगी , जो पृथ्वी के मुताबिक 14 दिनों का समय होगा.
चंद्रमा की सतह पर दिन में तापमान 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जबकि रात के समय यह तापमान शून्य से 120 डिग्री नीचे चला जाता है.
Chandrayaan-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश करेगा, जहां रात के समय तापमान शून्य से 230 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है.
इसका मतलब है कि 14 दिनों के बाद लैंडर और रोवर्स को काफी ठंडे तापमान में रहना होगा और उस स्थिति में इलेक्ट्रानिक उपकरण और बैटरी काम करना बंद कर सकते हैं.
यही वजह है कि इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ ने स्पष्ट किया है कि लैंडर और रोवर्स का जीवन 14 दिनों का होगा.