दादा साहब फाल्के, नारी तुझे सलाम व इत्यादि पुरुष्कारों से सम्मानित भारत की परमाणु सहेली, डॉ. नीलम गोयल ने जल-ऊर्जा-रोजगार आत्मनिर्भरता के पथ पर 3 गाँवों के एक क्लस्टर में 300 वर्षाजल पोंड़ों का निर्माण कार्य संपन्न करवा लिया है ।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया गया कि सम्पूर्ण देश का 60% भूजल स्तर पिछले दस सालों में ही नीचे चला गया है। भूजल गहराई स्तर में देहरादून व जयपुर के बाद, संपूर्ण भारत में, अहमदाबाद का तीसरा नंबर है। इतने गहरे भूजल स्तर के बाद भी, जल शक्ति मंत्रालय की लेटेस्ट रिपोर्ट के हिसाब से, अहमदाबाद की भूजल दोहन दर 150% है। यानि जितना पानी अहमदाबाद की भूमि में बारिश के जमीन में अंदर जा रहा है उस पानी का 150% या 1.5 गुना पानी अहमदाबाद भूजल से प्रति-वर्ष निकाल रहा है। इसीलिए ही जल शक्ति मंत्रालय की रिपोर्ट के हिसाब से भी अहमदाबाद अति-शोषित है। 150% दोहन दर के चलते समुर्ण अहमदाबाद व बनासकांठा जैसे ज़िले रेगिस्तान बनने की ओर मूड रहे हैं। भारत सरकार की इसी रिपोर्ट के हिसाब से इस 150% का 95 प्रतिशत पानी अहमदाबाद सिंचाई हेतु भूजल से निकाल रहा है। उद्योग व घरेलु मांग तो शेष 5 प्रतिशत पानी से ही पूरी हो जा रही है। इसका मतलब सिंचाई ही दोहन का मुख्य कारण है। भारत की परमाणु सहेली, डॉ नीलम गोयल व आईआईटी खड़गपुर से पासआउट व भारत सरकार में सलाहकार रह चुके उनके तकनीकि सलाहकार, विप्र गोयल ने मिलकर अपने जीवन का धेयै बनाया है कि वे इस 95% दोहन दर का खात्मा कर इस कीमती भूजल स्तर को दोहन से मुक्त कर उल्टा रिचार्ज की ओर ले जाएंगे । गिरते भूजल स्तर से अहमदाबाद को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जैसे पीने के पानी की कमी के साथ-साथ, वनस्पति सघनता में कमी, भूजल में फ्लोराइड व आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा व खारा होता हुआ भूजल। अगर हम कपडे व्यापार में देखें 1 जींस को बनने में 11000 लीटर पानी लगता है, 1 बेडशीट बनने में 10000 लीटर पानी प्रयोग होता है, 1 टी-शर्ट को बनाने में 3000 लीटर पानी, 1 A4 पेपर में 5 लीटर, 1 स्मार्ट फोन में 13000 लीटर, 1 जोड़ी जूते में 8000 लीटर व 1 कार गाड़ी बनाने में लगभग औसतन 70000 लीटर पानी प्रयोग होता है। अहमदाबाद के सभी व्यापारों की पानी पर अत्याधिक रूप से निर्भरता को देखते हुए 150% की इस दोहन दर ध्यान देना समय की आज सबसे बड़ी आवश्यकता है। पानी की कमी से अगर भारत के कृषि व कपडा बंद हो जाते हैं तो भारत के युवा-युवतियों को रोजगार कौन देगा ।
अहमदाबाद की बरसात करीब 800 एमएम है। यानी हर हेक्टेयर के खेत पर करीब 80 लाख लीटर पानी बरसता है। अहमदबाद की सतही प्रवाह दर के अनुसार इस बरसात का लगभग 20 प्रतिशत यानी 16 लाख लीटर वर्षाजल किसान के खेत से व्यर्थ बहकर चला जाता है। अहमदाबाद के लगभग 1.5 लाख किसान अपनी-अपनी जमीन के 5 प्रतिशत हिस्से में 15 फ़ीट गहरा फ़ार्म पोंड बना लेते हैं तो इसी अत्याधिक व व्यर्थ बहते जा रहे वर्षाजल को अपने खेत पर ही संरक्षित कर, बारामासी सिंचाई कर सकते हैं। इस प्रकार सिंचाई करने से 150% में से 142% का कृषि का दबाव बंद हो जाएगा और उल्टा 92% की दर से अहमदाबाद के भूजल स्तर फिर रिचार्ज होने लग जाएगा। भारत के प्रजातांत्रिक प्रणाली वाला देश है और चूँकि मीडिया प्रजातंत्र के चौथा स्तम्भ है इसीलिए मीडिया से ही निवेदन किया गया कि जनता की इस पानी की समस्या की आवाज़ को मजबूत किया जाए और समस्या की जड़ यानी सिंचाई दोहन दर को रोकने के लिए अहमदाबाद के सभी लगभग 1.5 लाख किसानों को अपने-अपने खेतों पर फ़ार्म पोंड बनवाने के लिए प्रेरित किया जाए। इसी हेतु भारत की परमाणु सहेली, डॉ नीयम गोयल, भारत के सर्वाधिक भूजल दोहन दर वाले जिले, दौसा में एक सम्पूर्ण ग्राम पंचायत (3 गावों के समूह) को भारत के पहले जल-ऊर्जा-रोजगार पर्याप्त मॉडल ग्राम पंचायत के रुप में विकसित करने हेतु संलग्न है। दौसा एक रेड ज़ोन जिला है जिसका भूजल स्तर 600 से 1200 फ़ीट तक पहुँच चुका है। इस मॉडल के बनने से राजस्थान व गुजरात ही नहीं अपितु सम्पूर्ण देश के किसानों को प्रकृति का ध्यान रखते हुए सिंचाई करने में प्रेरणा मिलेगी।
भारत की परमाणु सहेली भारत देश के हर कृषक ग्रामीण परिवार के घर-घर खेत-खेत पर बारोमासी पानी-बिजली की सतत पुख्ता व्यवस्था एवं क्षेत्रीय फैक्ट्रीयों की व्यवस्था के साथ प्रत्येक दो परिवारों से 5 लोगों को रोजगार/नौकरी की सुनिश्चितता की अपनी व्यावहारिक कार्यनीति के तहत 3 गाँवों के क्लस्टर को देश के समक्ष एक आदर्श क्लस्टर के रूप में स्थापित करने के प्रयास में लगी हुई हैं ।
परमाणु सहेली की कार्यनीति में निम्न कार्य शामिल हैं-
1. खेत-खेत पर बारोमॉसी पानी की सतत व्यवस्था;
2. खेत की क्यारियों तक पानी पहुंचाने हेतु सौलर पम्प व्यवस्था;
3. खेत-खेत पर साल में एक व्यापारिक फसल की उपज से लेकर सही दामों में बिक्री तक की व्यवस्था;
4. दस हजार किसान व पशुपालकों के बीच व इनके ही स्वामित्व में एक फ़ूड प्रोसेसिंग संयंत्र, एक दूध प्रोसिंग संयंत्र व एक बायोगैस-बायोखाद-बायोउर्वरक ट्रॉम्बो संयंत्र की स्थापना;
5. प्रति किसान व पशुपालक परिवार से दो वयस्कों के लिए उत्तम रोजगार की दौसा में ही सुनिश्चितता;
6. कस्बाई व शहरी युवक-युवतियों के लिए कारखानों की स्थापनाओं की व्यवस्था तथा नौकरियों की व्यवस्था
प्रति किसान परिवार आमदनी में 5 लाख रूपये से लेकर 15 लाख रूपये के इजाफे से इन परिवारों की खर्च करने की क्षमता में इजाफा होगा जिससे ये स्थानीय कस्बों शहरों से सामान-सट्टा खरीदेंगे और इस प्रकार छोटे-छोटे दुकानदारों से लेकर मध्यम व बड़े-बड़े उद्योगपतियों को भी लाभ होगा। जब प्रति 10000 किसान परिवारों के मध्य तीन-तीन यूनिट इन तीन उद्योगों फैक्ट्रीयों की लगेंगी तो इसके प्रबंधन में, चालन-प्रचालन और रक्षण-अनुरक्षण में स्थानीय सभी शिक्षित-अशिक्षित युवक-युवतियां, वयस्क कार्यभार संभालेंगे भारत के किसान परिवार व सभी प्रकार के कारोबारियों की कमाने और खर्च करने की व्यवस्था में गुणात्मक इजाफा होगा। जब सभी परिवारों की आय में इजाफा होने लगेगा तो ये परिवार अपने क्षेत्र में साफ़-सफाई, स्वास्थ्य यातायात की व्यवस्था करने में स्वयं ही सक्षम होने लगेंगे।
देश में रामराज की स्थापना में सहयोगी श्रेष्ठजनों व कारोबारियों का परमाणु सहेली हार्दिक धन्यवाद भी प्रस्तुत करती हैं ।